मेरठ:
इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडी (ईपीएस) और रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (आरएफऐ)
आधुनिक कार्डियोलॉजी में अत्यंत महत्वपूर्ण
नैदानिक और उपचारात्मक प्रक्रियाएं
हैं, जो अनियमित हृदय
गति (एरिथमिया) की पहचान और
उपचार में अहम भूमिका
निभाती हैं। ये तकनीकें
उन स्थितियों के समाधान में
क्रांतिकारी सिद्ध हुई हैं, जिन्हें
पहले पहचानना और इलाज करना
बेहद कठिन था।
इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी
स्टडी एक न्यूनतम इनवेसिव
प्रक्रिया है, जिसमें इलेक्ट्रोड
वाले कैथेटर के माध्यम से
हृदय की विद्युत गतिविधि
का परीक्षण किया जाता है।
यह प्रक्रिया अनियमित हृदय गति का
स्रोत और सही स्थान
पता लगाने में मदद करती
है। रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन ईपीएस के बाद की
जाने वाली उपचार प्रक्रिया
है, जिसमें रेडियोफ्रीक्वेंसी वेव्स से उत्पन्न गर्मी
के जरिए हृदय के
उस भाग को नष्ट
किया जाता है, जहां
से अनियमित विद्युत संकेत उत्पन्न हो रहे होते
हैं।
बीएलके-मैक्स हार्ट और वास्कुलर इंस्टीट्यूट
के चेयरमैन और एचओडी डॉ.
टी. एस. क्लेर ने
कहा “ईपीएस का उपयोग मुख्य
रूप से एरिथमिया का
प्रकार और स्रोत जानने,
अचानक हृदयगति रुकने (सडन कार्डियक डेथ)
के जोखिम का आकलन करने,
सही उपचार विकल्प तय करने (जैसे
दवा, पेसमेकर या एब्लेशन थेरेपी)
और पूर्व उपचार की सफलता की
जांच करने के लिए
किया जाता है। वहीं,
आरएफऐ का उपयोग स्थायी
रूप से एरिथमिया को
ठीक करने, लक्षणों को कम करने,
स्ट्रोक के जोखिम को
घटाने और जीवनभर की
दवा निर्भरता को समाप्त करने
में किया जाता है।“
ईपीएस
और आरएफऐ उन मरीजों के
लिए विशेष रूप से फायदेमंद
हैं, जो तेज या
अनियमित धड़कन (पल्पिटेशन), बेहोशी, चक्कर आना, सांस फूलना,
थकावट, सीने में दर्द
जैसे लक्षणों का अनुभव करते
हैं या अचानक कार्डियक
अरेस्ट की स्थिति से
गुजरे हों। ये अत्याधुनिक
प्रक्रियाएं न केवल एरिथमिया
के इन लक्षणों को
कम करती हैं, बल्कि
मरीजों की जीवन गुणवत्ता
को बेहतर बनाते हुए दीर्घकालिक समाधान
प्रदान करती हैं।
डॉ.
क्लेर ने आगे कहा
“ईपीएस और आरएफऐ जैसे
अत्याधुनिक उपचार उच्च सफलता दर
और न्यूनतम जोखिम के साथ मरीजों
की गुणवत्ता जीवन में सुधार
लाते हैं। तकनीकी प्रगति
के साथ, आने वाले
समय में इन प्रक्रियाओं
की प्रभावशीलता और सुरक्षा और
बेहतर होने की उम्मीद
है। एरिथमिया के लक्षणों से
जूझ रहे मरीजों को
जल्द से जल्द हृदय
विशेषज्ञ या इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिस्ट से संपर्क
कर इन प्रक्रियाओं की
आवश्यकता पर विचार करना
चाहिए।“
इन प्रक्रियाओं को पारॉक्सिज्मल सुप्रावेंट्रिकुलर टैकीकार्डिया, एट्रियल फिब्रिलेशन, एट्रियल फ्लटर, वेंट्रिकुलर टैकीकार्डिया और वोल्फ-पार्किंसन-व्हाइट (WPW) सिंड्रोम जैसे विशेष एरिथमिया स्थितियों में अत्यधिक उपयोगी माना गया है।
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