नई दिल्ली: हालांकि, देश-विदेश के सभी शिक्षक छात्रों की आने वाली पीढ़ियों को भविष्य के लिए तैयार करते हैं, लेकिन सफलता के लिए उन्हें री-डिस्कवर और रि-इंजीनियर के बारे में सिखाना जरूरी है। इस बात को ध्यान में रखते हुए, प्रथम टेस्ट प्रेप ने एजुकेशन लीडर कनफ्लुएंस 2020 के तीसरे एपिसोड को सफलतापूर्वक संचालित किया।
कनफ्लुएंस में एक और खास मुद्दे पर चर्चा की गई, जिसका विषय था- ‘स्कूलों को अपने छात्रों को नए युग के कौशल किस प्रकार से सिखाना चाहिए?’ इस चर्चा में भारत और अमेरिका के विभिन्न स्कूलों के प्रख्यात प्रधानाचार्यों ने पैनलिस्ट के रूप में भाग लिया।
भारत में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता से जुड़ी चर्चा गति प्राप्त कर रही है, जिसमें समाज में खुद को प्रस्तुत करने के लिए कौशल विकास और शिष्टाचार पर ज़ोर दिया जाता है।
प्रथम टेस्ट प्रेप के प्रबंध निदेशक, श्री अंकित कपूर ने बताया कि, “कोरोना काल में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बहुत ज्यादा बढ़ गया है। नए युग के कौशल को बढ़ाने के लिए नए युग के दृष्टिकोण की आवश्यकता है। और जब तक हम अपने स्कूलों में सफाई करने वाले स्टाफ से लेकर प्रबंधकों तक सभी स्तरों पर लीडर्स तैयार नहीं करते हैं, तब तक हमारे बच्चे भविष्य का सामना करने में सक्षम नहीं हो पाएंगे। आज के छात्र टेक-सैवी हैं, जो सबकुछ अपनी सुविधा अनुसार चाहते हैं। उनमें उस कौशल और दृष्टिकोण की कमी है जो दुनिया अपने कर्मचारियों में ढूँढ़ रही है।”
‘छात्रों को क्या सिखाया जा रहा है और वास्तव में उन्हें किस कौशल की जरूरत है’ यह एक बहुचर्चित विषय बन चुका है। ऐसे में योग्यता आधारित शिक्षा सबसे जरूरी है, जो न सिर्फ छात्रों बल्कि शिक्षकों के लिए भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। छात्र का मूल्यांकन एक समय में एक योग्यता के आधार पर किया जाता है। इसलिए छात्रों को पहले एक कौशल में निपुणता हासिल करना चाहिए उसके बाद ही अगले चरण की तरफ बढ़ना चाहिए।
अमृतसर स्थित दी मिलेनियम स्कूल की प्रधानाचार्या, सुश्री शैलजा टंडन ने बताया कि, “इस महामारी ने हमें सिखा दिया कि शिक्षा के माध्यम और डिलवरी के पैटर्न में बदलाव करना कितना जरूरी है। छात्रों को केवल परीक्षा भर के लिए नहीं बल्कि जिंदगी के लिए तैयार करना जरूरी है। इसके लिए उन्हें नए युग के कौशल से अवगत कराना अनिवार्य है। आज के बच्चे आने वाले समय में एक बड़े बदलाव का सामना करने वाले हैं इसलिए उन्हें जीवनभर की शिक्षा देना सभी स्कूलों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।”
टेक्नोलॉजी में लगातार बदलाव होते रहते हैं। जिस प्रकार से टाइपराइटर, ब्लैकबोर्ड, ऑडिटोरियम स्टाइल के क्लासरूम आदि जैसी पारंपरिक चीजें समय के साथ गायब हो गईं, उसी प्रकार से छात्रों को अंकों के आधार पर जज करने के चलन को भी खत्म करने की जरूरत है। शिक्षा के क्षेत्र में टेक्रनोलॉजी के कई फायदे हो सकते हैं, जिसमें छात्रों को व्यक्तिगत रूप से शिक्षा प्रदान करना भी शामिल है। इससे छात्रों के प्रदर्शन में भी सुधार किया जा सकता है।
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