एक्टोपिक प्रेगनेंसी के खतरे को बढ़ाती है सिजेरियन डिलीवरी
फरीदाबाद : कुछ अज्ञात कारणों से प्रेगनेंसी गर्भाशय से बाहर विकसित हो सकती है, जिसकी संभावना लगभग 6% है। ऐसे मामलों में मां की जान का खतरा बहुत ज्यादा होता है इसलिए तत्काल मेडिकल हस्तक्षेप जरूरी है।
आमतौर पर यही माना जाता है कि भ्रूण गर्भाशय से जुड़ा होता है लेकिन वास्तव में मामला अलग भी हो सकता है। यदि निषेचित अंडा फैलोपियन ट्यूब या पेट के निचले हिस्से में कहीं और जुड़ा हुआ है तो इस स्थिति को एक्टोपिक प्रेगनेंसी कहा जाता है। ऐसे मामलों में प्रेगनेंसी सामान्य नहीं रहती है और इसलिए आपातकालीन ट्रीटमेंट की आवश्यकता पड़ती है। अधिकतर मामलों में एक्टोपिक प्रेगनेंसी गर्भ धारण के शुरुआती हफ्तों में विकसित होती है।
हालांकि, एक्टोपिक प्रेगनेंसी के कारण अभी अज्ञात हैं, लेकिन कई अध्ध्यनों और डॉक्टरों के अनुभवों के अनुसार, पहली सिजेरियन डिलीवरी इस खतरनाक स्थिति के विकास में अहम भूमिका निभाती है। हालांकि, सिजेरियन स्कार एक्टोपिक प्रेगनेंसी एक दुर्लभ स्थिति है लेकिन यह उतनी ही गंभीर भी होती है। इस स्थिति में भ्रूण पहले सिजेरियन सी सेक्शन के मायोमेट्रियम से जुड़ा होता है। सिजेरियन डिलीवरी के मामलों में वृद्धि के साथ एक्टोपिक प्रगनेंसी के मामले भी बढ़ रहे हैंफरिदाबाद स्थित फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल की गायनोकोलॉजी विभाग की वरिष्ठ सलाहकार और एचओडी, डॉक्टर इंदु तनेजा ने बताया कि, “इस स्थिति के कारण अनिश्चित हैं लेकिन संभवता यह इसलिए होती है क्योंकि पहले सिजेरियन का घाव ठीक नहीं हो पाता है, जिसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि घाव, हिस्टिरोटॉमी, मायोमेक्टॉमी, असामान्य प्लेसेंटा और प्लेंसेंटा को मेनुअल तरीके से हटाना। इस स्थित में तत्काल इलाज की आवश्यकता होती है। तुरंत इलाज न करने पर सिजेरियन घाव फट सकता है, जो ब्लीडिंग का कारण बनता है। ऐसे में महिला शॉक में जा सकती है और यहां तक कि वह मर भी सकती है। गर्भाशय का घाव खुलने पर असामान्य प्लेंसेंटा, हेमरेज और जान का खतरा बनता है। शुरुआती निदान और उचित इलाज के साथ जच्चा और उसकी प्रेगनेंसी दोनों को बचाया जा सकता है।
हालांकि, सी-सेक्शन एक्टोपिक प्रेगनेंसी एक दुर्लभ स्थिति है लेकिन पुरानी सी-सेक्शन के कारण 0.15% दर के साथ 1:1800 से 1:2216 तक मामले देखे जाते हैं। वहीं एक्टोपिक प्रेगनेंसी के कुल 6.1% मामले दर्ज किए जाते हैं।
पेट के निचले हिस्से में गंभीर दर्द, वेजाइनल ब्लीडिंग और मिस्ड पीरियड आदि लक्षणों से ग्रस्त हैं तो एक्टोपिक प्रेगनेंसी के निदान के लिए अपने डॉक्टर से तुरंत परामर्श लें। एचसीजी, ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट से स्थिति की पहचान संभव है। गर्भ धारण के 11 दिनों बाद हार्मोन ह्यूमन कोरिओनिक गोनाडोट्रोपिन का उत्पादन होता है। यह हार्मोन बच्चे के प्लेसेंटा वाली कोशिकाओं द्वारा नसों और यूरीन में बनाया जाता है। इससे प्रेगनेंसी का टेस्ट संभव हो पाता है। प्रेगनेंसी के इस वक्त तक अल्ट्रासाउंड भ्रूण का जोड़ दिखाने में सक्षम नहीं होता है लेकिन 5 हफ्तों के बाद यह बिल्कुल सही रिपोर्ट देता है। इस स्थिति का निदान ट्रांसवेजाइनल सोनोग्राफी की मदद से किया जाता है।डॉक्टर इंदु ने अधिक जानकारी देते हुए कहा कि, “चूंकि, एक निषेचित अंडा गर्भाशय के बाहर जिंदा नहीं रह सकता है इसलिए महिला को गंभीर मुश्किलों से दूर रखने के लिए टिशू को हटाना जरूरी होता है। इस प्रकार की प्रेगनेंसी को जल्द से जल्द हटाने की सलाह दी जाती है। यदि प्रेगनेंसी में ज्यादा समय नहीं हुआ है, तो डॉक्टर एक इंजेक्शन की सलाह देता है, जो कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है। शुरुआती निदान के साथ एक्टोपिक प्रेगनेंसी के अधिकतर मामलों को सिर्फ मेडिकेशन की मदद से ठीक किया जा सकता है।
इसके इलाज में सिस्टेमिक मीथोट्रेक्सेट के साथ इंट्रा-एम्निओटिक केसीएल इंजेक्शन और गेस्टेशनल सैक एस्पायरेशन आदि मेडिकल थेरेपियां शामिल हैं। या फिर हिस्टिरोस्कोपी की मदद से भी इसे हटाया जा सकता है। 45 साल से अधिक उम्र की मरीजों के लिए हिस्टिरेक्टॉमी की जा सकती है।
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