नई दिल्ली : भले ही यह जानकारी आपको विस्मित कर दे कि यूरीन में हमेशा ब्लड मौजूद रहता है लेकिन मात्रा इतनी कम होती है कि माइक्रोस्कोप से देखने पर ही उसका पता चलता है। जब खुद मरीज को अपनी यूरीन में ब्लड जाता हुआ दिखाई देता है तब मामला गंभीर हो जाता है। आपको तभी अपनी यूरीन में ब्लड आता हुआ दिखाई देता है जब उसकी मात्रा अधिक होती है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इसे लेकर ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है लेकिन कुछ मरीजों के मामले में यह लक्षण किसी गंभीर बीमारी का पूर्व संकेत भी हो सकता है। इसलिए मूत्ररोग विशेषज्ञ से सलाह लें क्योंकि वह जांचों के बाद ही बता सकता है कि यूरीन के साथ ब्लड क्यों बाहर आ रहा है। यहां कुछ कारणों की जानकारी दी जा रही है जिनकी वजह से यूरीन के साथ खून निकल सकता है-
गुरुग्राम स्थित नारायणा सुपर स्पेशियालिटी हॉस्पिटल के नेफ्रोजिस्ट डॉ. सुदीप सिंह सचदेव का कहना है कि शरीर में ब्लेडर या यूरेथ्रा में जहां मूत्र इक_ा होता है और बाहर निकलने के मार्ग में रहता है वहां बैक्टेरिया का संक्रमण हो जाता है। जब भी मरीज को अपने यूरीन के साथ ब्लड आता हुआ दिखाई देता है तब उसे एक और लक्षण का अहसास होता है। डॉ. सुदीप सिंह सचदेव का कहना है कि यूरीनरी ट्रेक्ट इंफेक्शन बहुत देर तक ठीक न हो तो उसका असर किडनी पर भी हो जाता है। किडनी में संक्रमण होने के लक्षण पहले की तरह ही होते हैं लेकिन इस तरह के संक्रमण के बाद मरीज को बुखार भी आने लगता है। उसे कमर के दोनों ओर दर्द भी रहने लगता है। किडनियों से होते हुए यह संक्रमण अगर शरीर के दूसरे अवयवों तक फैलने लगे तो बीमारी और गंभीर रूप में प्रकट होने लगती है।
किडनी में कई तरह के खनिजों के जमा होने से वहां स्टोन बनने लगते हैं। यदि शरीर में कैल्शियम या अन्य खनिजों की मात्रा अधिक हो तो पथरी बनने लगती है। पथरी होने के बाद नितंब, कमर का निचला हिस्सा तथा पसलियों में बहुत तेज और असहनीय दर्द होता है। संभव है कि यूरीन के साथ ब्लड भी आता हुआ दिखाई देने लगे। कई मरीजों को यूरीन के साथ बारीक स्टोन्स भी निकलते दिखाई देते हैं। पथरियों का आकार बड़ा हो तो सर्जरी से निकाला जा सकता है। किडनी में सूजन, पॉलिसिस्टिक किडनी डिसीज, हैवी वर्कआउट, दवाओं का बुरा असर, चोट लगना, कैंसर आदि.।
यूरीन के साथ ब्लड आने की शिकायत पर यूरीन में संक्रमण की कल्चर रिपोर्ट कराई जा सकती है। इसके अलावा सीटी स्कैनिंग और एमआरआई तथा सिस्टोस्कोप से जांचें कराई जाती हैं। डॉ. सुदीप सिंह सचदेव के अनुसार आमतौर पर किसी भी संक्रमण को दूर करने के लिए एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जाता है। कैंसर होने की स्थिति में इलाज अलग तरह से प्लान किया जाता है। इसके लिए चिकित्सक की सलाह को ही अंतिम मानना चाहिए।
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